आशियाना

              " वीरान  आशियाना "

तुच्छ वीरान - सा 
मैं और मेरा आशियाना 
कभी भूले - भटके 
हो जो तुम्हारा आना 
अहसास करवा कर 
मेरी लाचारी का 
न दिल को जलाना 
ग़र लगा न सको 
मरहम मेरे ज़ख्मों पर 
तो नमक भी 
न छिडकाना 
भूले से भी 
आहत दिल पर पड़ा 
पर्दा ना उठाना 
याद से अतीत की 
मैं खुद तड़प उठता हूँ 
मुझे और न तडपाना 
हमदर्द ना बन सको तो 
झूठे दिलासों से ही 
मन को बहलाना 
" कायत " तो 
आज तलक रोता ही रहा है 
इसे और न रुलाना 
तुच्छ वीरान - सा 
मैं और मेरा आशियाना .... 


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