"प्यार"


             
                               "प्यार"

इश्क तो सदियों से रहा है काँटों का ताज
मासूम दिल उसे फूलों का हार समझ बैठा
बेमुरव्वत दौर में अपने भी हो गये हैं पराये
और नासमझ परायों को यार समझ बैठा
उसने तो की थी दिल बहलाने को दिल्लगी
ये नादाँ "कायत" उसे प्यार समझ बैठा ......

कृष्ण कायत ( पुरानी यादों से ...|)

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